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गुरुग्राम की थाना पालम विहार पुलिस के लिए गले की फांस बनी FIR No. 129-2022

सत्य ख़बर,गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज :

हरियाणा पुलिस रस्सी को सांप और सांप को रस्सी बनाने में कितनी माहिर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक-एक मामले को जांच करने में कई कई साल लगा रही है। जबकि मामले में करोड़ों रुपए का फर्जीवाड़ा हुआ हो। लेकिन पुलिस मामले में आरोपियों से मिलीभगत कर मामले को रफा दफा करने में लगी रहती है। जिससे सरकार के भ्रष्टाचार मिटाने के दावों की पोल खुल रही है। ऐसे ही धोखाधड़ी के एक दो साल पुराने मामले में थाना पालम विहार पुलिस मामले को रफा दफा करने में जुटी हुई है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सेक्टर 21 निवासी विजय ने एक मकान खरीदने के मामले में कोई धोखाधड़ी में थाना पालम विहार में 25 मार्च 2022 को मुकदमा नंबर 129 दर्ज कराया था। जिसमें आरोपियों ने धोखाधड़ी करके पीड़ित से 50 लख रुपए बैंक के मार्फत लिए थे, जिसकी जांच पड़ताल करने पर सारे पेपर फर्जी निकले थे। जिसमें जांच अधिकारी आरोपियों से साजबाज हो गए थे और मामले को दबाए रखा। पुरानी पेंडिंग केशव की जानकारी प्रदेश के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल विज ने मांगी तब इस केस के जांच अधिकारी को निलंबित कर दिया। वहीं उसको बचाने के लिए एक अन्य जांच अधिकारी ने एफआईआर को रद्द करने की तैयारी शुरू कर दी थी। मामला काफी पुराना हो होने से यह आए दिन मिल रही पीड़ित को धमकियों से परेशान होकर पीड़ित ने न्यायालय का रुख किया। पीड़ित ने अपने वकील के माध्यम से उक्त मामले की स्टेटस रिपोर्ट थाने से मांग ली। जिसे अदालत ने संबंधित थाना पालम विहार से जब मुकदमे की स्टेटस रिपोर्ट मांगी तो थाने में बैठे जांच अधिकारी के हाथ पैर फुल गए। जहां पहले जांच अधिकारी आरोपियों से सांठगांठ कर मामले को रफा दफा करने की तैयारी कर रहे थे । वही कोर्ट द्वारा मांगी गई जानकारी से अपनी जान बचाने के लिए मामले को रद्द करने की बजाय फिर से अलग तरह से जांच करने में जुट गए। वहीं अदालत में भी बहाने बाजी करने लग गए। जिसपर अदालत ने सही जवाब न देने पर कई बार थाने से फाईल लेकर पहुंचे अधिकारी को फटकार भी लगाई। वहीं अदालत ने जांच की कार्रवाई रिपोर्ट के साथ थाना प्रभारी की फाइल डायरी भी अगली तारीख पर साथ लाने के आदेश दिए।

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वहीं सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि थाने से जांच अधिकारी ने एक लिखित नोटिस जारी कर इस केस से संबंधित कछ महत्वपूर्ण जानकारी मांगी है।

इसमें पुलिस के जांच अधिकारी ने जानकारी मांगी है कि जब आरोपी आपके घर धमकी देने आए तो उस वक्त घर पर कौन-कौन मौजूद थे,वहीं मकान खरीदने का जो एग्रीमेंट साइन कराया गया वह किसके सामने और उसमें गवाह कौन-कौन थे। उनकी जानकारी दी जाए। उनको भी जांच में शामिल किया जाएगा। वहीं आरोपी राजीव जाखड,श्याम सुंदर गीता व सवींन को आप कब से जानते हो। वहीं इस मुकदमे में आपस में कोई राजीनामा तो नहीं किया है। जिससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस अदालत में तो कुछ जवाब दे रही है और अपने आप कार्रवाई कुछ ओर ही कर रही है। इस मामले में सबसे दिलचस्प बात है सामने आई है कि पुलिस ने जब धमकी देने की धारा मामला दर्ज कर रखी थी तो इतने दिनों तक मामले को दबाए क्यों बैठी रही। अगर पीड़ित के साथ कुछ अनहोनी हो जाती तो उसका जिम्मेदार कौन होता। आरोपियों को इतने दिनों तक खुली छूट क्यों दे रखी थी। यह तो शिकायतकर्ता ने अदालत में दरखास्त लगा दी वरना उसको बताया ही नहीं जा रहा था कि पुलिस इस मामले में क्या कार्रवाई कर रही है। जबकि मुकदमा दर्ज होते ही सबसे पहले पुलिस के जाच अधिकारी ने इससे संबंधित सभी गवाह सबूत इकट्ठे करने चाहिए थे। इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि थाना पालम पुलिस सांप को रस्सी और रस्सी बनाने में कितनी माहिर हो चुकी है।

बता दें कि उक्त मामला जीएमआईसी विक्रांत की अदालत में चल रहा है। जो थाना उन्हीं के अंतर्गत आता है। तथा गत दिनों इसी अदालत ने इसी क्षेत्र के एसीपी को सही ढंग से सैल्यूट नहीं करने पर पुलिस आयुक्त से रिपोर्ट मांगी थी।

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वहीं पुलिस की मामलों में बढ़ती जा रही लापरवाही को देखते हुए हाई कोर्ट के वकील भी पुलिस पर आरोप लगा चुके हैं कि पुलिस पीड़ितों को शटल काक की तरह इस्तेमाल कर परेशान और भिखारी बना रही है। जबकि सरकार उन्हें मोटी-मोटी तनक दे रही है फिर भी पीड़ितों को न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। पुलिस को दिए गए सबूतों को भी पुलिस नजर अंदाज कर जांच रिपोर्ट में ही शामिल नहीं कर रहे हैं। ऐसे सैकड़ो मामले पुलिस विभाग के अधिकतर थानों में दबे पड़े हैं। और यह सब ऊंची पहुंच वाले और भ्रष्टाचार के कारण ही खेल खेला जा रहा है। जब इस प्रकार के मामले के बारे में पुलिस के आला अधिकारी से जानकारी ली जाती है तो वह सही जवाब न देकर केवल टालमटोल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

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